koi tha jis ko chupa kar rakha tha hum ne par ab kahi kho gaya hai jism to hamara hi hai par dard koi aur is main de gaya hai ab mahsus nahi hota hame koi gham aur na samajh pate hai koi khushi lagta hai aisa ke kisi ke jane se zindagi main bas Andhra cha gaya hai
Bas do saal ki jindagi aur hai meri Sochta hu ise me sab ko khus rakhu 🥺🥺🥺
KHAYALOU MAI TOU MAI KHOYA BOHOT HUU KHAYALOU MAI TOU MAI KHOYA BOHOT HUU LEKIN JAB BAAT TERI AYI TOU MAI ROYA BOHOT HUU
तेरे जाने के बाद मेरे साथ एक व्याख्यान हुआ मैं तो खामोश रहा पर दिल बहुत परेशान हुआ । अब फख्त़ हो गयी रहमत की सुनो ये हादसा मेरे साथ एक जगह नहीं ,एक बख्त़ नहीं ,एक बार नहीं हर बार हुआ ।।
hello
Kas pyar jaisi koi cheez na hota Ummed na hoti dil tutne ka dard na hota To sab kitna aasan hota Na kisi se koi guzaris hota Na kisi pe aitbaar Na intezar Na khuda ke faisle pe sawal....
जहा जीती पर मेरी मात हो गई है तन्हा सखसियत मेरी कायनात हो गई है देखना तुम हवा में उठेगी मेरी भी खुशबू अब मेरी जाट दरख़्त की जात हो गई है हर एक बेवफा अब ईमान से बाहर होगा शहर के दानिशवरों से मेरी बात हो गई है सिखस्त खा कर ऐसे उठा रहा हूं तजुर्बे मानो मेरी जिंदगी एक वारदात हो गई है अब मुझे डर नहीं हुस्न से मेरे जाने का जितनी मुमकिन थी एहतियात हो गई है सलीम कमल उसमे ऐसे डुबो जाता है मानो की वो लड़की नहीं दावत हो गई है
रात यूँही ढलती जाए जाम जाम से जाम टकराते जाए ना कल की फिक्र हो ना आजका पता मेरे दोस्तों की मैफिल में सब लापता हो !
लग गयी आग उस आशियाने में जिसमें तू कभी रहती थी ।
मुझे तू याद क्यू आती है वे दिली बेरहम तेरी यादें मुझे क्यूं नहीं कुछ बताती हैं । जाहिल सा गया है इस तरह कुछ आवारा पल अब तो पागल रात भी हंसकर मुझे जिंदा लाश बताती है।।
नशा इश्क का हो या धूम्र दारु का एकदिन बर्बाद हो जाउंगा । यूं रोज सिंगार की तरह जलकर एक दिन धुआं हो जाऊंगा ।।
जब मैंने तुम्हें पाया ही नहीं तो खोने का दर्द क्यूं होता है ।
खुले तूफ़ानों के शोरों का शायद ही मैंने ऐसा कभी मंजर देखा । अंधियारी रात में जब दर्द से तड़पते हुए एक बवंडर को देखा ।।
जुदा तुमने मुझे किया लेकिन खुश आज फिर भी तुम नहीं । आज चांद खफ़ा खफ़ा सा लग रहा है पास से न तो दूर से ही सही ।। दुःख तो बहुत है मुझे तेरे दर्द का अपना न तो पराया ही सही । काश ! मैं तेरे दर्द भी अपनी तरफ़ मोड़ पाता पर मैं बदकिस्मत तेरे हाथ की एक लकीर तक नहीं ।।
हर दफा मोह्हबत की आड़ में धोखा दिया गया लड़ते भी तो किस से गुनेहगार कोई और नहीं में खुद ही था
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