सीख नहीं पा रहा हूँ मीठे झूठ बोलने का हुनर, कड़वे सच से हमसे न जाने कितने लोग रूठ गये।
शोर करते रहो तुम.. सुर्ख़ियों में आने का.. हमारी तो खामोशियाँ भी, एक अखबार हैं।
सारे साथी काम के, सबका अपना मोल, जो संकट में साथ दे, वो सबसे अनमोल।
दर्द की शाम है, आँखों में नमी है, हर सांस कह रही है, फिर तेरी कमी है।
कौन कहता है कि हम झूठ नही बोलते, एक बार खैरियत तो पूछ के देखिये।
वो सुर्ख होंठ और उनपर जालिम अंगडाईयां, तू ही बता, ये दिल मरता ना तो क्या करता।
वो दुश्मन बनकर, मुझे जीतने निकले थे, दोस्ती कर लेते, तो मैं खुद ही हार जाता।
कौन कहता है के तन्हाईयाँ अच्छी नहीं होती, बड़ा हसीन मौका देती है ये ख़ुद से मिलने का।
कौन कहता है अलग अलग रहते हैं हम और तुम, हमारी यादों के सफ़र में हमसफ़र हो तुम।
काश.. बनाने वाले ने थोड़ी-सी होशियारी और दिखाई होती, इंसान थोड़े कम और इंसानियत ज्यादा बनाई होती।
मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है, तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद है।
शर्म नहीं आती उदासी को जरा भी, मुद्दतों से मेरे घर की महेमान बनी हुई है।
उसकी याद आयी है सांसो जरा अहिस्ता चलो, धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है।
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