कितना वाकिफ थी वो मेरी कमजोरी से, वो रो देती थी, और मैं हार जाता था।
गुमनामी का अँधेरा कुछ इस तरह छा गया है, कि दास्ताँ बन के जीना भी हमें रास आ गया है।
अधूरी मोहब्बत मिली तो नींदें भी रूठ गयी, गुमनाम ज़िन्दगी थी तो कितने सकून से सोया करते थे।
जिंदगी बड़ी अजीब सी हो गयी है, जो मुसाफिर थे वो रास नहीं आये, जिन्हें चाहा वो साथ नहीं आये।
किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं अल्फ़ाज़ से भरपूर मगर खामोश।
वो मुस्कान थी कहीं खो गयी, और मैं जज्बात था कहीं बिखर गया।
मरना भी मुश्किल है जिस शख्श के वगैर, उस शख्स ने ख्वाबों में भी आना छोड़ दिया।
हम तो बने ही थे तबाह होने के लिए, तेरा छोड़ जाना तो महज़ बहाना बन गया।
परदा तो होश वालों से किया जाता है हुज़ूर, तुम बेनक़ाब चले आओ हम तो नशे में हैं।
लड़खड़ाये कदम तो गिरे उनकी बाँहों मे, आज हमारा पीना ही हमारे काम आ गया।
कभी देखेंगे ऐ जाम तुझे होठों से लगाकर, तू मुझमें उतरता है कि मैं तुझमें उतरता हूँ।
गुनगुनाना तो तकदीर में लिखा कर लाए थे, खिलखिलाना दोस्तों से तोहफ़े में मिल गया।
हम अपने आप पर गुरूर नहीं करते, किसी को प्यार करने पर मजबूर नहीं करते, जिसे एक बार दिल से दोस्त बना लें, उसे मरते दम तक दिल से दूर नहीं करते।
एक ताबीज़ तेरी मेरी दोस्ती को भी चाहिए... थोड़ी सी दिखी नहीं कि नज़र लगने लगती है।
प्यार से कहो तो आसमान मांग लो, रूठ कर कहो तो मुस्कान मांग लो, तमन्ना यही है कि दोस्ती मत तोड़ना, फिर चाहें हँसकर हमारी जान मांग लो।
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