वो मोहब्बतें जो तुम्हारे दिल में हैं, उससे जुबां पर लाओ और बयां कर दो, आज बस तुम कहो और कहते ही जाओ, हम बस सुनें ऐसे बे-ज़ुबान कर दो.
दिल का दर्द युँ लफ़्ज़ों में बयाँ करते ही नहीं, तेरी तसवीर आँखों से न बह जाये इसलिये रोते ही नहीं, तेरे इश्क़ का जुनुँ छाया है इस क़दर, ज़िंदा हैं ईसी ग़ुमान में वर्ना हम होते ही नहीं
Nazare karam mujh par itana na kar.. ki teri mohabbat ke lie baagi ho jaaun, mujhe itana na pila ishq-e-jaam ki, main ishq ke jahar ka aadi ho jaaun.
मेरी यादो में तुम हो, या मुझ मे ही तुम हो, मेरे ख्यालो में तुम हो, या मेरा ख्याल ही तुम हो, दिल मेरा धड़क के पुछे बार बार एक ही बात, मेरी जान में तुम हो या मेरा जान ही तुम हो।
साथ रहते यूँ ही वक़्त गुज़र जायेगा, दूर होने के बाद कौन किसे याद आयेगा, जी लो ये पल जब हम साथ हैं, कल क्या पता वक़्त कहाँ ले जायेगा।
इश्क तो करता है हर कोई, महबूब पे मरता है तो हर कोई, कभी वतन को महबूब बना कर देखो तुझ पे मरेगा हर कोई ..........!!!
कुछ नशा तिरंगे की आन का है, कुछ नशा मातृभूमि की शान का है, हम लहरायेंगे हर जगह ये तिरंगा, नशा ये हिंदुस्तान की शान का है.
न मरो सनम बेवफा के लिए, दो गज जमीन नहीं मिलेगी दफ़न होने के लिए, मरना है तो मरो वतन के लिए, हसीना भी दुपट्टा उतार देगी तेरे कफ़न के लिए.
मुझे ना तन चाहिए, ना धन चाहिए बस अमन से भरा यह वतन चाहिए जब तक जिन्दा रहूं, इस मातृ-भूमि के लिए और जब मरुँ तो तिरंगा कफ़न चाहिये
ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये….
एहसान ये रहा तोहमत लगाने वालों का मुझ पर, उठती उँगलियों ने मुझे मशहूर कर दिया।
आज तक है उसके लौट आने की उम्मीद, आज तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगह, लाख ये चाहा कि उसे भूल जाये पर,
रंजिश ही सही दिल को दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ, कुछ तो मेरे इश्क़ का रहने दे भरम, तू भी तो कभी मुझे मनाने के लिए आ
कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा, आँखों को देखा पर दिल मे उतर कर नहीं देखा, पत्थर समझते है मेरे चाहने वाले मुझे, हम तो मोम है किसी ने छूकर नहीं देखा
We love ourself even after making so many mistakes. Then how can we hate others 4 their small mistakes? Strange but true! So make habit of FORGIVING.
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