लिख दूँ तो लफज़ तुम हो , सोच लूँ तो ख्याल तुम हो , माँग लूँ तो मन्नत तुम हो , और चाह लूँ तो मोहब्बत भी तुम ही हो।
मुझसे नफरत करके भी खुश ना रह पाओगे, मुझसे दूर जाकर भी पास ही पाओगे , प्यार में दिमाग पर नहीं दिल पर ऐतबार करके देखिये , अपने आप को रोम – रोम में बसा पाएँगे।
कुछ रिश्तों को कभी भी… नाम ना देना तुम… इन्हें चलने दो ऐसे ही… इल्ज़ाम ना देना तुम ॥ ऐसे ही रहने दो तुम… तिश्नग़ी हर लफ़्ज़ में… के अल्फ़ाज़ों को मेरे… अंज़ाम ना देना तुम ॥
प्यार कहो तो दो ढाई लफज़, मानो तो बन्दगी , सोचो तो गहरा सागर,डूबो तो ज़िन्दगी , करो तो आसान ,निभाओ तो मुश्किल , बिखरे तो सारा जहाँ ,और सिमटे तो ” तुम “
अकेले हम बूँद हैं, मिल जाएं तो सागर हैं अकेले हम धागा हैं, मिल जाएं तो चादर हैं अकेले हम कागज हैं, मिल जाए तो किताब हैं।
ये आँखें हैं जो तुम्हारी , किसी ग़ज़ल की तरह खूबसूरत हैं…. कोई पढ़ ले इन्हें अगर इक दफ़ा तो शायर हो जाए…!!
मेरी नजरों की तरफ देख जमानें पे न जा , इक नजर फेर ले, जीने की इजाजत दे दे, रुठ ने वाले वो पहली सी मोहब्बत दे दे , इश्क मासुम है, इल्जाम लगाने पे न जा….
जो तू साथ न छोड़े ता-उम्र मेरा ए मेहबूब मौत के फ़रिश्ते को भी इनकार न कर दूं तो कहना इतनी कशिश है मेरी मुहब्बत की तासीर में दूर हो के भी तुझ पे असर न कर दूं तो कहना !
दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक नही होती तेरा जिक्र’ होते ही दरो दीवार महकने लगते है
जिस रात को चाँद से तेरी बातें की हमने सुबह की आँख मे आँसू उभरने लगते है
हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है जब भी हम तेरी गली से गुजरने लगते है
जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है, किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है
सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहा , सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा , जाने क्या बात थी उसमें और मुझ में ,सारी महफ़िल भूल गए बस वही एक चेहरा याद रहा
शौंक नहीं है मुझे अपने जज़्बातों को यूँ सरेआम लिखने का … मगर क्या करूँ , अब जरिया ही ये है तुझसे बात करने का
मेरी आँखों से आसूँ भले ही ना निकले हो पर ये दिल आज भी तेरे लिए रोता है … लाखों दिल भी मिल कर उतना प्यार नहीं कर सकते जितना ये अकेला दिल तुमसे करता है..
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