"घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा
"ये तेरी बेरूखी की हम से आदत खास टूटेगी.....! कोई दरिया ना ये समझे की मेरी प्यास टूटेगी.....! तेरे वादे का तू जाने मेरा वो ही इरादा है....! कि जिस दिन सास टूटेगी उसी दिन आस टूटेगी....!!"
कहो कुछ भी नहीं हमसे,मुझे खुद से जुदा कर दो..!झुका लो बेवफा नजरें,यहीं से अलविदा कर दो..!!ख़ता बस इतनी है मेरी,तुम्हें हम प्यार करते हैं,चले जाओ यहाँ से तुम,मेरी वापस वफा कर दो..!!भले ही तोड़ दो रिश्ता,मगर कह शुक्रिया तो दो,हमें दिल में बसाने का,जरा ये हक़ अदा कर दो..!!थे गुजरे साथ जो लम्हें,खडे़ हैं आज भी द़र पे,उन्हें तुम मुस्करा करके,अगर चाहो विदा कर दो..!!ख़फा होना भी है दस्तूर,यारों इस मोहब्बत का,बसा "वीरान" घर मेरा,कोई फिर से ख़ता कर दो..
किसी के दिल को चोट पहुचाकर, माफ़ी मांगना बहुत ही आसान है, लेकिन खुद चोट खाकर, दूसरों को माफ़ करना बहुत मुशकिल है!
वो कहने लगी नकाब में भी पहचान लेते हो… हजारों के बीच… मेंने मुस्करा के कहा तेरी आँखों से ही शुरू हुआ था “इश्क” हज़ारों के बीच…
काश वो भी आकर हम से कह दे मैं भी तन्हाँ हूँ, तेरे बिन, तेरी तरह, तेरी कसम, तेरे लिए
हम भी किसी की दिल की हवालात में कैद थे..!! फिर उसने गैरों के जमानत पर हमें रिहा कर दिया.
चाहने वालो को नही मिलते चाहने वाले.! हमने हर दगाबाज़ के साथ सनम देखा है..
शौक से तोडो दिल मेरा, मुझे क्या परवाह, तुम्ही रहते हो इसमें, अपना ही घर उजाड़ोगे.
छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी, आरजू करना, जिसे मोहब्बत, की कद्र ना हो उसे दुआओ, मे क्या मांगना
मोहब्बत का नतीजा, दुनिया में हमने बुरा देखा, जिन्हे दावा था वफ़ा का, उन्हें भी हमने बेवफा देखा.
काश एक ख़्वाहिश पूरी हो इबादत के बगैर, तुम आ कर गले लगा लो मुझे, मेरी इज़ाज़त के बगैर….
हमने तुम्हें उस दिन से और ज़्यादा चाहा है, जबसे मालूम हुआ के तुम हमारे होना नही चाहते.
रिश्ते उन्ही से बनाओ जो निभानेकी औकात रखते हो, बाकी हरेक दिल काबिल-ऐ-वफा नही होता ।
बहुत देर करदी तुमने मेरी धडकनें महसूस करने में..! वो दिल नीलाम हो गया, जिस पर कभी हकुमत तुम्हारी थी..!
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