Shikshaprad

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Shikshaprad

जीवन में आगे बढ़ने के लिए हम सभी किसी न किसी से प्रेरणा जरूर लेते हैं, जैसे अपने बड़ों से अपने मां-बाप से एवं अपने गुरुजनों से| ऐसी ही कुछ शिक्षाप्रद कहानियां (shikshaprad kahaniyan) नीचे लिखी गई है जिनसे हमें जीवन में आगे बढ़ने और सदा सही कार्य करने के लिए प्रेरणा 
 

एक बार हजरत मोहम्मद साहब अपने दोस्तों और इमामों को मस्जिद में ले गए और उनसे पूछा:-” आपके पास क्या-क्या है?”

हजरत उमर ने कहा:- “मेरी औरत है, लड़के लड़कियां हैं और ऊंट वगैरह है|” सब कुछ गिनते-गिनते उसे बहुत देर हो गई| दूसरे लोगों ने भी इसी तरह उत्तर दिए|


 
जब हज़रत अली की बारी आई तो वह अपनी जगह से उठे और बोले:-” मेरा तो एक खुदा है और एक आप है, इसके अलावा मेरा कुछ नहीं|” हजरत मोहम्मद साहब को यही सुनना था
संसार में भौतिक चीजों का कोई खास महत्व नहीं है| यह हमारे पास थोड़े समय
के लिए ही होती हैं| जो इस दुनिया में जितना ज्यादा फंसा हुआ है वह उतना ही परेशान है|
शाहजहां की विनम्रता
 

दोपहर का वक्त था| बादशाह शाहजहां को प्यास लगी| उन्होंने इधर उधर देखा| लेकिन कोई नौकर भी पास नहीं था, क्योंकि आमतौर पर पानी की सुराही भरी हुई पास ही रखी होती थी| पर उस दिन सुराही में भी पानी नहीं था|

बादशाह शाहजहां, एक कुएं के पास पहुंचे और पानी निकालने की कोशिश करने लगे| बादशाह जैसे ही बाल्टी पकड़ने के लिए आगे झुके तो कुए पर लगी हुई चकरी उनके माथे में जा लगी और खून बहने लगा|


 
किंतु गुस्सा करने की बजाय बादशाह ने कहा:-” शुक्र है! मेरे मालिक तेरा शुक्र है, जिस आदमी को कुएं से पानी भी निकालना नहीं आता, ऐसे बेवकूफ आदमी को आपने बादशाह बना दिया| यह आपकी रहमत नहीं है तो और क्या है?”


दुख आने पर हमें घबराना नहीं चाहिए बल्कि दुख में भी ईश्वर का शुक्र मनाना चाहिए|
महात्मा और खजूर
एक बार एक महात्मा बाजार से होकर गुजर रहा था| रास्ते में एक व्यक्ति खजूर बेच रहा था| उस महात्मा के मन में विचार आया कि खजूर लेनी चाहिए| उसने अपने मन को समझाया और वहां से चल दिए| किंतु महात्मा पूरी रात भर सो नहीं पाया|


वह विवश होकर जंगल में गया और जितना बड़ा लकड़ी का गट्ठर उठा सकता था, उसने उठाया| उस महात्मा ने अपने मन से कहा कि यदि तुझे खजूर खानी है, तो यह बोझ उठाना ही पड़ेगा| महात्मा,थोड़ी दूर ही चलता, फिर गिर जाता, फिर चलता और गिरता|

उसमें एक गट्ठर उठाने की हिम्मत नहीं थी लेकिन उसने लकड़ी के भारी भारी दो गट्ठर उठा रखे थे| दो ढाई मील की यात्रा पूरी करके वह शहर पहुंचा और उन लकड़ियों को बेचकर जो पैसे मिले उससे खजूर खरीदने के लिए जंगल में चल दिया|


 
खजूर सामने देखकर महात्मा का मन बड़ा प्रसन्न हुआ| महात्मा ने उन पैसों से खजूर खरीदें लेकिन महात्मा ने अपने मन से कहा कि आज तूने खजूर मांगी है, कल फिर कोई और इच्छा करेगी| कल अच्छे-अच्छे कपड़े और स्त्री मांगेगा अगर स्त्री आई तो बाल बच्चे भी होंगे| तब तो मैं पूरी तरह से तेरा गुलाम ही हो जाऊंगा| सामने से एक मुसाफिर आ रहा था| महात्मा ने उस मुसाफिर को बुलाकर सारी खजूर उस आदमी को दे दी और खुद को मन का गुलाम बनने से बचा लिया|


यदि मन का कहना नहीं मानोगे तो इस जीवन का लाभ उठाओगे
यदि मन की सुनोगे तो मन के गुलाम बन जाओगे|