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इतनी मेहनत करो की सपने मजबूत हो जाए पुरे होने के लिए।
मेरा जीवन एक खुला किताब है | हर कोई जानने को रहता बेताब है | मेरे जीवन से प्रेरणा हैं सब लेते | मान सम्मान मुझे हैं देते |
मंजिल दूर नहीं मंजिल दूर नहीं कोशिश तो करके देख जिंदगी मिली है भीख नहीं जीकर तो देख खुद को कमजोर समझेगा कब तक गुरुर करके तो देख सब से आगे खुद को ही समझेगा भरोसा करके तो देख। शिवकुमार बर्मन ✍️
Saree zindagee hum koshish karty rahay. Toba ka sajada karnasky. Zindgee yuhee guzarti gayee gunahu mai yuhee uljatee gayee
मौत को तो यूही बदनाम करते ह लोग.. तकलीफ तो जिंदगी देती है।
😊✨👌🤩 मेरी जिन्दगी मेरी जान हो तुम, मेरे सुकून का दूसरा नाम हो तुम. 😊✨👌🤩
Zaroorat to hoti hai sabhi ko mager, Kuch zaroorat airayish hoti hai zindagi ki.
जिंदगी जैसे जलानी थी वैसे जला दी हमने, अब धुएं पर बहस कैसी और राख पर ऎतराज कैसा ।
Mujhe Dard Se Shikwa Nahin Hai Ye khuda........ Bus Dard Mein muskurane ki Kala Mujhe bakhste Rehana
Wakt sahi nhi toh Kya ,wakt ko sahi karne ki takad Hain humme. Wakt rutha Hain humse to Kya, wakt ko manane ki adat hain humme.
*"कद्र"* करनी है तो *"जीते जी"* करें *"मरने"* के बाद तो *"पराए"* भी रो देते हैं आज *"जिस्म"* मे *"जान"* है तो देखते नही हैं *"लोग"* जब *"रूह"* निकल जाएगी तो *"कफन"* हटा हटा कर देखेंगे *किसी ने क्या खूब लिखा है* *"वक़्त"* निकालकर *"बाते"* कर लिया करो *"अपनों से"* अगर *"अपने ही"* न रहेंगे तो *"वक़्त"* का क्या करोगे *"गुरुर"* किस बात का... *"साहब"* आज *"मिट्टी"* के ऊपर तो कल "मीट्टीकै नीचे.
उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते.. अब मुझे स्कूल न जाने वाले..बहाने बनाने नही आते.. कभी पा लेते थे..घर से निकलते ही..मंजिल को.. अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने नही आते.. मुंह चिढाती है..खाली जेब..महीने के आखिर में.. अब बचपन की तरह..गुल्लक में पैसे बचाने नही आते.. यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे.. मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी उठाने नही आते.. माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं.. क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने नही आते.. बहला रहा हूं बस दिल को बच्चों की तरह.. मैं जानता हूं..फिर वापस बीते हुए जमाने नही आते..
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